इस पोस्ट में आप लोगों को कक्षा 10 के दो अति महत्वपूर्ण लेख मिलेंगे।
यह दो लेख अक्सर कक्षा 10 के बोर्ड एग्जाम में 10 अंकों के पूछे जाते हैं। इस पोस्ट को आप लोग educationalpoints की ऑफिशियल वेबसाइट पर पड़ रहे हैं।
1.कश्मीर समस्या
भूमिका— कहा जाता है कि समस्याएँ शाश्वत होती है । लेकिन अनेक समस्याओं में कुछ प्रकृतिस्थ होती है , जैसे – रोजी – रोटी , बेकारी , भूखमरी , वस्त्र और आवास आदि और कुछ समस्याएँ ऊपर से थोपी गई होती है । कश्मीर समस्या भी उन्हीं थोपी गयी समस्या को मजबूती प्रदान किया । स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही इस सीमांचल की सामरिक और संवैधानिक दोनों दृष्टियों से विशेष महत्त्व है । लेकिन कश्मीर समस्या हमारे लिए राष्ट्रीय स्तर से बढ़कर अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बनी हुई है ।
ऐतिहासिकता— हमें सन् 1947 में आजादी मिली । जब अंग्रेज इस देश को छोड़कर जा रहे थे तब उन्होंने शत्रुतावश एक राग छोड़ दिया , कहा कि जो भी छोटे – बड़े राज्य हैं वे अपने राजनीतिक , भौगोलिक , प्राकृतिक स्थिति के अनुसार स्वेच्छया निर्णय लें कि भारतीय गणराज्य में रहना चाहते हैं या स्वतंत्र रहना चाहते हैं । पाकिस्तान अमेरिका परस्त था । उसके ही बहकावे पर कबाइलियों ने कश्मीर को हस्तगत करने हेतु आक्रमण किया । तत्कालीन राजा हरि सिंह और नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख नेता शेख अब्दुल्ला ने भारत में रहना स्वीकार किया । फौजी कार्रवाई हुई । पुनः कश्मीर को जीत लिया गया । लेकिन कुछ भाग कश्मीर से चला गया । यदि गाँधीजी की बात मान ली गई होती तो आज यह समस्या रहती ही नहीं । लेकिन प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लार्ड माउंटबेटन की बात मानकर संयुक्त राष्ट्र संघ में इस मुद्दे को लेकर चले गए । परिणाम यह हुआ कि कश्मीर बड़ी समस्या बनकर रह गया ; जो आज भी है ।
भारत में कश्मीर का महत्त्व – कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है । राजनैतिक , भौगोलिक , प्राकृतिक और सामरिक दृष्टि से यह सीमांचल हमारे लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । जहाँ केशर की क्यारियाँ और मीठे फलों तथा औषधीय वनस्पतियों का आच्छादन है । शैलानियों से मोटी आय यह सब हमारे लिए महत्व रखता है । लेकिन पड़ोसी मुल्क की आँख का काँटा बना हुआ यह राज्य आज की तारीख में बहुत बड़ी समस्या होने के बाद भी महत्त्वपूर्ण है ।
आज स्थिति — सन् 1965 के युद्ध में करारी हार के बाद बदले की भावना लिए पाकिस्तान कश्मीर का बहाना बनाकर अनेक प्रकार का षड्यंत्र रचता आया है । कश्मीर के नवयुवकों को बरगलाकर , पैसे का लालच और धर्म का वास्ता देकर उग्रवादी बनाया जा रहा है । फलाफल यह है कि उग्रवाद के घिनौने रूप से यह धरती का स्वर्ग नरक बनता जा रहा है । जबकि सन् 1965 में शिमला समझौता में यह तय हुआ था कि भारत और पाकिस्तान कश्मीर या अन्य मुद्दों पर समस्याओं के निराकरण के लिए बातचीत द्वारा शांतिपूर्ण हल निकालेंगे । लेकिन सब बेकार रहा समस्या बनी की बनी ही नहींं रही बल्कि और विकट होती जा रही है।
उपसंहार–– खून में रंगी आज की कश्मीर धरती को उबारने के लिए सैनिक कार्रवाई ही मात्र एक हल दिखता है। यही विचार अहिंसा वादी महात्मा गांधी का भी था।
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2.दहेज प्रथा एक अभिशाप
भूमिका– दहेज – प्रथा भारतीय समाज के लिए अभिशाप है । हमारी सामाजिक संरचना इससे बुरी तरह प्रभावित हुई है । यह प्रथा नारी जीवन की अस्मिता पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है । इस प्रथा के चलते नारी जीवन त्रस्त है । न जाने कितनी कन्याएँ इसकी बलिवेदी पर जल रही हैं ।
प्राचीन काल में इसका रूप– प्राचीन काल में दहेज को ‘ यौतुक ‘ या ‘ स्त्रीधन ‘ कहा जाता था । विवाह के समय कन्या के माता – पिता वर पक्ष को जो वस्त्राभूषण , धन तथा सामान देते थे , उसमें कहीं से भी कोई दबाव नहीं था । प्राचीन काल में दहेज देने की प्रथा तो थी , पर उसमें किसी प्रकार की बाध्यता नहीं थी । यह पूर्णतः कन्या पक्ष की सामर्थ्य और श्रद्धा पर आधृत थी ।
वर्तमान काल में इसकी विडम्बना– दुर्भाग्य से आजकल दहेज की जबरदस्ती माँग की जाती है । दूल्हों के भाव लगते हैं । बुराई की हद यहाँ तक बढ़ गई है कि जो जितना शिक्षित है , समझदार है , उसका भाव उतना ही तेज है । आज डॉक्टर , इंजीनियर का भाव आसमान छू रहा है । यही सबसे बड़ी विडम्बना है।
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दहेज – प्रथा के कुपरिणाम– दहेज – प्रथा के दुष्परिणाम विभिन्न हैं । या तो कन्या के पिता को लाखों का दहेज देने के लिए घूस , रिश्वतखोरी , भ्रष्टाचार , कालाबाजार आदि का सहारा लेना पड़ता है , या उसकी कन्याएँ अयोग्य वरों के मत्थे मढ़ दी जाती हैं । हम रोज समाचार – पत्रों में पढ़ते हैं कि अमुक शहर में कोई युवती रेल के नीचे कट मरी , किसी बहू को ससुराल वालों ने जलाकर मार डाला , किसी ने छत से कूदकर आत्महत्या कर ली । ये सब घिनौने परिणाम दहेजरूपी दैत्य के ही है
इसे रोकने के कानूनी प्रावधान– हालांकि दहेज को रोकने के लिए समाज में संस्थाएँ बनी हैं , युवकों से प्रतिज्ञा – पत्रों पर हस्ताक्षर भी लिए गए हैं , कानून भी बने हैं , परंतु समस्या ज्यों – की – त्यों है । सरकार ने ‘ दहेज निषेध अधिनियम के अंतर्गत दहेज के दोषी को कड़ा दंड देने का विधान रखा है । परंतु , वास्तव में आवश्यकता है जन – जागृति की । जब तक युवक दहेज का बहिष्कार नहीं करेंगे और युवतियाँ दहेज – लोभी युवकों का तिरस्कार नहीं करेंगी , तब तक यह कोढ़ चलता रहेगा ।
उपसंहार– दहेज अपनी शक्ति के अनुसार दिया जाना चाहिए , धाक जमाने के लिए नहीं । दहेज दिया जाना ठीक है , माँगा जाना ठीक नहीं । दहेज को बुराई वहाँ कहा जाता है , जहाँ माँग होती है । दहेज प्रेम का उपहार है , जबरदस्ती खींच ली जाने वाली संपत्ति नहीं ।
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