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प्रश्न 1. यूनानी स्वतंत्रता आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण दें ।
उत्तर — यूनान में राष्ट्रीयता का उदय यूनान का अपना गौरवमय अतीत रहा है जिसके कारण उसे पाश्चात्य राष्ट्रों का मुख्य स्रोत माना जाता था । यूनानी सभ्यता की साहित्यिक प्रगति , विचार , दर्शन , कला , चिकित्सा , विज्ञान आदि क्षेत्रों में उपलब्धियाँ पाश्चात्य देशों के लिए प्रेरणास्रोत थीं । पुनर्जागरण काल से ही पाश्चात्य देशों ने यूनान से प्रेरणा लेकर काफी विकास किया था , परन्तु इसके बावजूद यूनान अभी भी तुर्की साम्राज्य के अधीन था । फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित होकर यूनानियों में राष्ट्रवाद की भावना का विकास हुआ । धर्म , जाति और संस्कृति के आधार पर यूनानियों की पहचान एक थी , फलतः यूनान में तुर्की शासन से अपने को अलग करने के लिए कई आंदोलन चलाये जाने लगे । इसके लिए वहाँ हितेरिया फिलाइक ( Hetairia Philike ) नामक संस्था की स्थापना ओडेसा नामक स्थान पर की गई । यूनान की स्वतंत्रता का सम्मान समस्त यूरोप के नागरिक करते थे । इंगलैण्ड का महान कवि लॉर्ड बायरन यूनानियों की स्वतंत्रता के लिए यूनान में ही शहीद हो गया । इस घटना से संपूर्ण यूरोप की सहानुभूति यूनान के प्रति बढ़ चुकी थी । रूस जैसा साम्राज्यवादी राष्ट्र भी यूनान की स्वतंत्रता का समर्थक था । रूस तथा यूनान के लोग ग्रीक अर्थोडॉक्स चर्च को मानने वाले थे
प्रश्न 2. जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का वर्णन करें ।
उत्तर- जर्मनी के एकीकरण में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका बिस्मार्क की रही उसने सुधार एवं कूटनीति के अंतर्गत जर्मनी के क्षेत्रों का प्रशाकरण अथवा प्रशा का एकीकरण करने का प्रयास किया । वह प्रशा का चांसलर था । वह मुख्य रूप से युद्ध के माध्यम से एकीकरण में विश्वास रखता था । इसके लिए उसने रक्त और लौह की नीति का पालन किया । इस नीति से तात्पर्य था कि सैन्य उपायों द्वारा ही जर्मनी का एकीकरण करना । उसने जर्मनी में अनिवार्य सैन्य सेवा लागू कर दी । जर्मनी के एकीकरण के लिए बिस्मार्क के तीन उद्देश्य थे
( i ) पहला उद्देश्य प्रशा को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाकर उसके नेतृत्व में जर्मनी के एकीकरण को पूरा करना ।
( ii ) दूसरा उद्देश्य आस्ट्रिया को परास्त कर उसे जर्मन परिसंघ के बाहर निकालना था ।
( ii ) तीसरा उद्देश्य जर्मनी को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाना था ।
सर्वप्रथम उसने फ्रांस एवं आस्ट्रिया से संधि कर डेनमार्क पर अंकुश लगाया । बिस्मार्क ने आस्ट्रिया के साथ मिलकर 1864 में श्लेसविंग और हाल्सटाइन राज्यों के मुद्दे लेकर डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया । जीत के बाद श्लेसविंग प्रशा के तथा हाल्सटाइन आस्ट्रिया के अधीन हो गया । डेनमार्क को पराजित करने के बाद उसका मुख्य शत्रु आस्ट्रिया था । बिस्मार्क ने यहाँ भी कूटनीति के अंतर्गत फ्रांस से संधि कर 1866 में सेडोवा के युद्ध में आस्ट्रिया को पराजित किया और पोप के अधिकार वाले सारे क्षेत्र को जर्मनी में मिला लिया । अंततः , 1870 में सेडान के युद्ध में फ्रांस को पराजित कर फ्रैंकफर्ट की संधि की गई और फ्रांस की अधीनता वाले सारे राज्यों को जर्मनी में मिलाकर जर्मनी का एकीकरण पूरा हुआ ।
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प्रश्न 3. जुलाई 1830 की क्रांति का विवरण दें ।
उत्तर- फ्रांस के शासक चार्ल्स- X एक निरंकुश एवं प्रतिक्रियावादी शासक था । इसके काल में इसका प्रधानमंत्री , पोलिग्नेक ने लुई 18 वें द्वारा स्थापित समान नागरिक संहिता के स्थान पर शक्तिशाली अभिजात्य वर्ग की स्थापना की तथा इस वर्ग को विशेषाधिकार प्रदान किया । उसके इस कदम से उदारवादियों एवं प्रतिनिधि सदन ने पोलिग्नेक का विरोध किया । चार्ल्स- X ने 25 जुलाई , 1830 ई . को चार अध्यादेशों द्वारा उदारवादियों को दबाने का प्रयास किया । इस अध्यादेश के खिलाफ पेरिस में क्रांति की लहर दौड़ गई तथा फ्रांस में गृहयुद्ध आरम्भ हो गया । इसे ही जुलाई , 1830 की क्रांति कहते हैं । परिणामस्वरूप , चार्ल्स- X फ्रांस की गद्दी को छोड़कर इंगलैण्ड पलायन कर गया तथा इसी के साथ फ्रांस में बूढे वंश के शासन का अंत हो गया । जुलाई , 1830 की क्रांति के परिणामस्वरूप फ्रांस में बूर्वो वंश के स्थान पर ‘ आर्लेयेस वंश गद्दी पर आया । आर्लेयेस वंश के शासक लुई फिलिप ने उदारवादियों , पत्रकारों तथा पेरिस की जनता के समर्थन से सत्ता प्राप्त की थी , अतः उसकी नीतियाँ उदारवादियों के समर्थन में संवैधानिक गणतंत्र की स्थापना करना थीं ।
प्रश्न 4. यूरोप में राष्ट्रवाद के उदय के कारणों एवं प्रभाव की चर्चा करें ?
उत्तर – राष्ट्रवाद एक ऐसी भावना है जो किसी क्षेत्रविशेष के भौगोलिक , सांस्कृतिक या सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों में एकता का वाहक बनती है । यह आधुनिक विश्व की राजनीतिक जागृति का परिणाम है । राष्ट्रवादी चेतना का उदय यूरोप में पुनर्जागरण काल से ही शुरू हो चुका था , परन्तु 1789 ई . के फ्रांसीसी क्रांति में यह सशक्त रूप लेकर प्रकट हुआ । 19 वीं शताब्दी तक आते – आते परिणाम युगान्तकारी सिद्ध हुए । 18 वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में नेपोलियन के आक्रमणों ने यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना के प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । इटली , पोलैण्ड , जर्मनी और स्पेन में नेपोलियन द्वारा ही ‘ नवयुग ‘ का संदेश पहुँचा । फ्रांसीसी क्रांति का नारा ‘ स्वतंत्रता , समानता और विश्वबंधुत्व ‘ ने राजनीति को अभिजात्यवर्गीय परिवेश से बाहर कर उसे अखबारों , सड़कों और सर्वसाधारण की वस्तु बना दिया । नेपोलियन के आक्रमण से इटली और जर्मनी में एक नया अध्याय आरम्भ होता है । उसने समस्त देश में एक संगठित एवं एकरूप शासन स्थापित किया । इससे वहाँ राष्ट्रीयता के विचार उत्पन्न हुए । इसी राष्ट्रीयता की भावना ने जर्मनी और इटली को मात्र भौगोलिक अभिव्यक्ति की सीमा से बाहर निकालकर उसे वास्तविक एवं राजनैतिक रूपरेखा प्रदान की जिससे इटली और जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ ।
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परिणाम
( i ) यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना के विकास के कारण यूरोपीय राज्यों का एकीकरण हुआ । इसके कारण कई बड़े तथा छोटे राष्ट्रों का उदय हुआ ।
( ii ) यह यूरोपीय राष्ट्रवाद का परिणाम था कि 19 वीं शताब्दी के अंतिम उत्तरार्द्ध में ‘ संकीर्ण राष्ट्रवाद ‘ को जन्म हुआ । संकीर्ण राष्ट्रवाद के कारण प्रत्येक राष्ट्र की जनता और शासक के लिए उनका राष्ट्र ही सबकुछ हो गया । इसके लिए वे किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार थे । बाल्कन प्रदेश के छोटे – छोटे राज्यों एवं विभिन्न जातीय समूहों में भी यह भावना जोर पकड़ने लगी ।
( iii ) यूरोपीय राष्ट्रवाद के प्रभाव के कारण जर्मनी , इटली जैसे राष्ट्रों में साम्राज्यवादी प्रवृत्तियों का उदय हुआ । इस प्रवृत्ति ने एशियाई एवं अफ्रीकी देशों को अपना निशाना बनाया जहाँ यूरोपीय देशों ने उपनिवेश स्थापित किये । इन्हीं उपनिवेशों के शोषण पर ही औद्योगिक क्रांति की आधारशिला टिकी थी । इसी साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के कारण ऑटोमन साम्राज्य का पतन हुआ ।
( iv ) यूरोपीय राष्ट्रवाद का प्रभाव अफ्रीका एवं एशियाई उपनिवेशों पर भी पड़ा । इन उपनिवेशों में विदेशी शासन से मुक्ति के लिए स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हो गया । यूरोपीय राष्ट्रवाद का प्रभाव भारत पर भी पड़ा । मैसूर के शासक टीपू सुल्तान खुद 1789 की फ्रांसीसी क्रांति से काफी । 6 प्रभावित थे । उन्होंने जेको बिन क्लब की स्थापना की तथा खुद उसके सदस्य बने । उन्होंने श्रीरंगपट्टम में स्वतंत्रता का प्रतीक ‘ वृक्ष ‘ भी लगवाया । 19 वीं शताब्दी में चलने वाले सामाजिक – धार्मिक सुधार आंदोलन के प्रणेताओं ने भी भारत में राष्ट्रीय चेतना को जगाया । राजा राममोहन राय ने 1821 ई . की नेपल्स की क्रांति भी विफलता पर काफी दुःख प्रकट किया तथा 1823 ई . के स्पेनिश स्वतंत्रता आंदोलन की सफलता पर उत्सव भोज दिया । भारत में 1857 की क्रांति से ही राष्ट्रीयता के लक्षण नजर आने लगे । इस प्रकार , यूरोपीय राष्ट्रवाद ने पहले यूरोप को एवं अंत में पूरे विश्व को प्रभावित किया ।
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