अर्थव्यवस्था और आजीविका के
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EDUCATIONAL POINTS CLASS 10TH HISTORY
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प्रश्न 1. औद्योगिकीकरण ने सिर्फ आर्थिक ढाँचे को ही प्रभावित नहीं किया बल्कि राजनैतिक परिवर्तन का भी मार्ग प्रशस्त किया ; कैसे ?
उत्तर – औद्योगिकीकरण ने न सिर्फ आर्थिक ढाँचे को ही प्रभावित किया , बल्कि राजनैतिक परिवर्तन का भी मार्ग प्रशस्त किया । महात्मा गाँधी ने जब असहयोग -आंदोलन की शुरुआत की तो राष्ट्रवादियों के साथ – साथ अहमदाबाद एवं खेड़ा मिल के मजदूरों ने उनका साथ दिया । गाँधीजी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने पर जोर देते थे । इसका कारण यह था कि कुटीर उद्योग को भारत में पुनर्जीवित किया जा सके । पूरे भारत में मिलों में काम करने वाले मजदूरों ने ‘ भारत छोड़ो ‘ आंदोलन को अपना समर्थन दिया । अतः , औद्योगिकीकरण जिसकी शुरुआत एक आर्थिक प्रक्रिया के तहत हुई थी । उसने भारत में राजनैतिक एवं सामाजिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया । ।
प्रश्न 2. कुटीर उद्योग के महत्त्व एवं उपयोगिता पर प्रकाश डालें ।
उत्तर- भारत में औद्योगिकीकरण नै कुटीर उद्योगों को काफी क्षति पहुँचाई , परन्तु इस विषम परिस्थिति में भी गाँवों में यह उद्योग फल – फूल रहा था जिसका लाभ आम जनता को मिल रहा था । स्वदेशी आंदोलन के समय कुटीर उद्योग के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता । महात्मा गाँधी के अनुसार लघु एवं कुटीर उद्योग भारतीय सामाजिक दशा के अनुकूल है । कुटीर उद्योग उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन से , अत्यधिक संख्या में रोजगार उपलब्ध कराने में तथा राष्ट्रीय आय को बढ़ाने जैसे महत्त्व से जुड़ा है । सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं का समाधान कुटीर उद्योगों द्वारा ही होता है । यह सामाजिक , आर्थिक प्रगति व क्षेत्रवार संतुलित विकास के लिए एक शक्तिशाली हथियार है । यह बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर को बढ़ाता कुटीर उद्योग में बहुत कम पूँजी की आवश्यकता होती है । कुटीर उद्योग में वस्तुओं के उत्पादन करने की क्षमता कुछ लोगों के हाथ में न रहकर बहुत – से लोगों के हाथ में रहती है । कुटीर उद्योग जनसंख्या को बड़े शहरों में पलायन को रोकता है । कुटीर उद्योग गाँवों को आत्म – निर्भर बनाने का एक औजार है । औद्योगिकीकरण के विकास के पहले भारतीय निर्मित वस्तुओं का विश्वव्यापी बाजार था । भारतीय मलमल और छींट तथा सूती वस्त्रों की माँग पूरे विश्व में थी । ब्रिटेन में भारतीय हाथों से बनी हुई वस्तुओं को ज्यादा महत्त्व देते थे । हाथों से बने महीन धागों के कपड़े , तसर सिल्क , बनारसी तथा बालुचेरी साड़ियाँ तथा बुने हुए बॉडर वाली साड़ियाँ एवं मद्रास की लुगियों की माँग ब्रिटेन के उच्च वर्गों में अधिक थी । चूँकि ब्रिटिश सरकार की नीति भारत में विदेशी निर्मित वस्तुओं का आयात एवं भारत के कच्चामाल के निर्यात को प्रोत्साहन देना था , इसलिए ग्रामीण उद्योगों पर ध्यान नहीं दिया गया । फिर भी स्वदेशी आंदोलन के समय खादी जैसे वस्त्रों की मांग ने कुटीर उद्योग को बढ़ावा दिया । आगे दो विश्वयुद्धों के बीच कुटीर उद्योगों द्वारा बनी वस्तुओं की माँग बढ़ने लगी ।
प्रश्न 3. औद्योगिकीकरण के कारणों का वर्णन करें । (VVI)
उत्तर – औद्योगिकीकरण के कारण
- आवश्यकता आविष्कार की जननी
- नई-नई मशीनों का आविष्कार
- कोयलें एवं लोहे लोगों की प्रचुरता
- फैक्ट्री प्रणाली की शुरुआत
- सस्ते श्रम की उपलब्धता
- यातायात की सुविधा
- विशाल औपनिवेशिक स्थिति
18 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में नई – नई मशीनों के आविष्कार ने औद्योगिक क्रांति को बढ़ावा दिया । सन् 1769 में बॉल्टन – निवासी रिचर्ड आर्कराइट ने सूत काटने की ‘ स्पिनिंग फ्रेम ‘ ( Spinning Frame ) बनाई जो जलशक्ति से चलती थी । 1770 में स्टैंडहील – निवासी जेम्स हारग्रीब्ज ने सूत काटने के लिए ‘ स्पिनिंग जेनी ‘ ( Spinning Jenny ) बनाई । सन् 1773 में लंकाशायर के जॉन के ने ‘ फ्लाइंग शल ‘ ( Flying Shuttle ) बनाया , जिसके द्वारा जुलाहे बड़ी तेजी से काम करने लगे तथा धागे की माँग बढ़ने लगी । 1779 में सैम्यूल क्राम्पटन ने ‘ स्पिनिंग म्यूल ‘ ( Spinning Mule ) बनाया । 1785 में एडमंड कार्टराइट ने वाष्प से चलनेवाली ‘ पावरलुम ‘ ( Powerloom ) नामक करघा बनाया । टॉमस बेल ‘ बेलनाकार छपाई ‘ ( Cylindrical Printing ) से सूती वस्त्रों की रंगाई एवं छपाई शुरू हो गया । 1769 में जेम्स वाट ने वाष्प इंजन बनाया । इन आविष्कारों के कारण 1820 ई . तक ब्रिटिश सूती वस्त्र उद्योगों में काफी विकास हुआ । ब्रिटेन में कोयले एवं लोहे की खानें थीं । वस्त्र उद्योग की प्रगति कोयले एवं लोहे के उद्योग पर निर्भर कर रहा था । वाष्प के इंजन बनने के बाद रेलवे इंजन बनने लगे जो कारखानों के लिए कच्चा माल लाने तथा तैयार माल ले जाने में सहायक सिद्ध हुआ ।
1815 ई . में हम्फ्री डेवी ने खानों में काम करने के लिए ‘ सेफ्टी लैम्प ‘ ( Safety – Lamp ) का आविष्कार किया । 1815 ई . में हेनरी बेसेमर ने लोहा को गलाने की भट्ठी का आविष्कार किया । नई – नई मशीनों को बनाने के लिए लोहे की आवश्यकता बढ़ती गई । नवीन आविष्कारों के कारण लोहे का उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा जिससे आने वाले युग को ‘ इस्पात युग ‘ भी कहा गया । फैक्ट्री प्रणाली के कारण उद्योग एवं व्यापार के नये – नये केन्द्र स्थापित होने लगे । लिवरपुल में स्थित लंकाशायर तथा मैनेचेस्टर सूती वस्त्र उद्योग के बड़े केन्द्र बन गया । न्यू साउथवेल्स ऊन उत्पादन का केन्द्र बन गया । रेशम तथा सन उद्योग ( Linen Industry ) का भी ब्रिटेन में विकास हुआ । सस्ते श्रम की उपलब्धता औद्योकरण के विकास के लिए आवश्यक था । ब्रिटेन में बाड़ाबंदी अधिनियम 1792 ई . से लागू हुआ । बाड़ाबंदी प्रथा के कारण जमींदारों ने छोटे – छोटे खेतों को खरीदकर बड़े – बड़े फार्म स्थापित किये । किसान , भूमिहीन – मजदूर बन गए । बाड़ाबंदी कानून के कारण बेदखल भूमिहीन किसान कारखानों में काम करने के लिए मजबूर हुए । अतः , ये कम मजदूरी पर भी काम करने को बाध्य थे । इस सस्ते श्रम ने उत्पादन को बढ़ाने में सहायता की । परिणामस्वरूप , औद्योगिकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ । ब्रिटेन में यातायात की अच्छी सुविधा उपलब्ध थी जिसके कारण कारखाना से उत्पादित वस्तुओं को एक जगह दूसरी जगह ले जाने में तथा कच्चा माल को कारखाना तक लाने में सुविधा हुई । रेल के आविष्कार ने स्थल यातायात के क्षेत्र में क्रांति ला दी । 1814 ई ० में जॉर्ज स्टीफेन्सन ने भाप इंजन – ‘ रॉकेट ‘ का आविष्कार किया । इस आविष्कार के फलस्वरूप मैनचेस्टर और लिवरपूल के बीच 1830 ई ० में प्रथम रेलगाड़ी चली । रेलों द्वारा कोयला , लोहा एवं अन्य औद्योगिक उत्पादनों को कम समय में और कम खर्च पर लाना – ले जाना संभव हुआ । जहाजरानी उद्योग द्वारा सभी देशों के सामानों का आयात – निर्यात होने लगा । लगभग 1880 ई ० में पेट्रोल इंजन के आविष्कार ने परिवहन के क्षेत्र में पुनः क्रांति पैदा कर दी । यातायात की सुविधाओं ने औद्योगीकरण की गति को तीव्र कर दिया । ब्रिटेन के उपनिवेशों का योगदान औद्योकरण के क्षेत्र में लाभकारी रहा । क्योंकि ब्रिटेन उपनिवेशों से कच्चा माल सस्ते दामों पर खरीदकर अपने यहाँ के कारखानों से उत्पादित वस्तुओं को महँगे दामों पर उपनिवेश के बाजारों में बेचता था । अतः , उपनिवेश कच्चे मालों के स्रोत के रूप में तथा तैयार माल के बाजार के रूप में विकसित होने लगे ।
प्रश्न 4. उपनिवेशवाद से आप क्या समझते हैं ? औद्योगिकीकरण ने उपनिवेशवाद को जन्म दिया ; कैसे ?
उत्तर – उपनिवेशवाद – उपनिवेशवाद एक ऐसा ढाँचा है जिसके माध्यम से किसी देश का आर्थिक और उसके परिणामस्वरूप राजनैतिक , सामाजिक तथा सांस्कृतिक शोषण तथा उत्पीड़न पूरा होता है । उपनिवेशवाद वास्तव में साम्राज्यवाद को फलित – फूलित एवं विकसित करने का तरीका है । औद्योगिक क्रांति से उत्पादन में काफी वृद्धि हुई । इन उत्पादित वस्तुओं की खपत के लिए ब्रिटेन तथा अन्य यूरोपीय देशों को बाजार की आवश्यकता थी । इन्हीं आवश्यकताओं ने उपनिवेशवाद को बढ़ावा दिया । फलतः , भारत ब्रिटेन का उपनिवेश बना क्योंकि भारत सिर्फ प्राकृतिक एवं कृत्रिम संसाधन सम्पन्न देश ही नहीं था , बल्कि एक वृहत् बाजार के रूप में उपलब्ध था । 18 वीं शताब्दी तक भारतीय उद्योग विश्व में सबसे अधिक विकसित थे । औद्योगिकीकरण के पूर्व भारतीय हस्तकला , शिल्प उद्योग तथा व्यापार पर ब्रिटेन का कब्जा था । अंग्रेज व्यापारी एजेंट की मदद से यहाँ के कारीगरों को पेशगी की रकम देकर उनसे उत्पादन करवाते थे । ये एजेंट ही ‘ गुमाश्ता ‘ कहलाते थे । ये गुमाश्ता मनमाने दामों पर सामान खरीदकर उसका निर्यात इंगलैण्ड तथा अन्य यूरोपीय देशों में करते थे । इस व्यापार से उन्हें काफी लाभ प्राप्त हुआ । इस प्रकार ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार पर एकाधिपत्य स्थापित हो चुका था । 1813 ई ० में ब्रिटिश संसद ने एक चार्टर ऐक्ट ( Charter Act ) पारित किया । इस ऐक्ट ने ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार पर एकाधिपत्य समाप्त कर दिया और मुक्त व्यापार की नीति ( Policy of Free Trade ) का अनुसरण किया गया । मुक्त व्यापार की नीति की वजह से भारत में निर्मित वस्तुओं पर ब्रिटेन ने भारी बिक्री कर लगा दिया । भारतीय वस्तुओं के निर्यात पर सीमा शुल्क और परिवहन शुल्क भी लगाया गया ताकि भारतीय वस्तु महँगी हो जाए । वहीं ब्रिटिश वस्तुओं पर किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लगता था । अतः , ब्रिटिश वस्तुएँ भारतीय बाजारों में सस्ती बिकने लगीं । साथ – ही – साथ भारत से कच्चे माल का अधिकतम दोहण ब्रिटेन में होने लगा । ऐसी स्थिति में देशी उद्योगों का पतन शुरू हो गया । 1850 के बाद मैनचेस्टर से भारी मात्रा में वस्त्र भारत आना शुरू हो गया । भारत में कुटीर उद्योग के शिल्पकारों एवं काश्तकारों को ज्यादा महँगा कच्चामाल खरीदना पड़ रहा था । धीरे – धीरे कुटीर उद्योगों को बंद कर ये शिल्पकार एवं कारीगर खेती करने पर मजबूर हो गए । इस प्रकार भारत में कुटीर उद्योगों का ह्रास होने लगा । भारतीय इतिहासकारों ने इसे ही भारत के उद्योग के लिए वि – औद्योकरंण ( निरुद्योगीकरण ) ( De Industrialisation ) की संज्ञा दी । ब्रिटिश सूती वस्त्रों की खपत 1814 ई . में 10 लाख गज से बढ़कर 1835 ई . में 5 करोड़ गज हो गई । दूसरी ओर , भारतीय सूती वस्त्र की खपत ब्रिटेन में 1272 लाख गज से घटकर 3 लाख 6 हजार तथा 1844 ई . तक तो 6300 गज ही रह गयी ।
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