History Urbanization and Urban Life Some important educational points
यह पोस्ट कक्षा 10 के विद्यार्थियों के लिए अति महत्वपूर्ण है। इस पोस्ट में शहरीकरण एवं शहरी जीवन के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न है। इस पोस्ट को आप लोग जरुर याद कर ले।
प्रश्न 1. एक औपनिवेशिक शहर के रूप में बम्बई शहर के विकास की समीक्षा करें । (VVI QUESTION)
उत्तर — बम्बई भारत का एक प्रमुख शहर है । उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक बम्बई का विस्तार तीव्रता से हुआ । शुरुआत में बम्बई सात टापुओं का इलाका था । जैसे – जैसे आबादी बढ़ी इन टापुओं को एक – दूसरे से जोड़ दिया गया ताकि ज्यादा जगह पैदा की जा सके । इस तरह बम्बई एक विशाल शहर के रूप में अस्तित्व में आया । बम्बई औपनिवेशिक भारत की वाणिज्यिक राजधानी थी । एक प्रमुख बंदरगाह होने के नाते यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र था जहाँ से कपास और अफीम जैसे कच्चे माल बड़ी तादाद में रवाना किए जाते थे । इस व्यापार के कारण न सिर्फ व्यापारी और महाजन बल्कि कारीगर एवं दुकानदार भी बम्बई में बसने लगे । कपड़ा मिलें खुलने पर और अधिक संख्या में लोग इस शहर की ओर उन्मुख हुए । 1854 ई . में पहली कपड़ा मिल स्थापित हुई और 1921 ई . तक वहाँ 85 कपड़ा मिलें खुल चुकी थी जिनमें लगभग 1,46,000 मजदूर काम कर रहे थे । 1931 ई . तक लगभग एक – चौथाई ही बम्बई के निवासी थे , बाकी निवासी बाहर से आकर बसे थे । बम्बई घनी आबादी वाला शहर है । बम्बई का विकास सुनियोजित रूप से नहीं हो सका । 1800 के आसपास बम्बई फोर्ट एरिया शहर का केन्द्र था और दो हिस्सों में बँटा हुआ था । एक हिस्से में ‘ नेटिव ‘ रहते थे और दूसरे हिस्से में यूरोपीय या ‘ गोरे ‘ लोग रहते थे । फोर्ट आबादी के उत्तर में एक यूरोपीय उपनगर और औद्योगिक पट्टी भी विकसित होने लगी थी ।
प्रश्न 2. ग्रामीण तथा नंगरीय जीवन के बीच की भिन्नता को स्पष्ट करें। (VVI QUESTION)
उत्तर – ग्रामीण तथा नगरीय जीवन के बीच काफी भिन्नताएँ हैं । जहाँ जनसंख्या की दृष्टि से गाँव की आबादी कम होती है , नगरों की आबादी ज्यादा होती है । आज शहरों में तेजी से बढ़ती रोजगार की अपार संभावनाओं ने ग्रामीण लोगों को शहरों की ओर पलायन करने को विवश किया है जिसके कारण शहरों की जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है । शहरों में जनसंख्या का घनत्व गाँवों से अधिक है । गाँवों की अर्थव्यवस्था का स्रोत कृषि तथा पशुपालन है जो उनकी आजीविका का मुख्य साधन है , वहीं दूसरी ओर शहरों में व्यापार और उत्पादन आदि आजीविका के साधन हैं । गाँव का प्राकृतिक वातावरण काफी स्वच्छ होता है , लेकिन शहरों में बढ़ती जनसंख्या के कारण , फैक्ट्रियों के निर्माण के कारण वातावरण काफी प्रदूषित होता है । शिक्षा , स्वास्थ्य , यातायात , रोजगार आदि सुविधाएँ शहर में अधिक उन्नत अवस्था में होती हैं जबकि गाँव में इन सबों का अभाव होता है । आर्थिक तथा प्रशासनिक संदर्भ में भी ग्रामीण तथा नगरीय व्यवस्था में अंतर है । शहरों तथा नगरों से गाँव को उनके आर्थिक प्रारूप में कृषिजन्य क्रियाकलाप में एक बड़े भाग के आधार पर भी अलग किया जाता है । गाँव की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कृषि संबंधी व्यवसाय से जुड़ा है । अतः , एक कृषि – प्रधान अर्थव्यवस्था मूलत : जीवन – निर्वाह अर्थव्यवस्था की अवधारणा पर आधारित थी । ऐसे वर्ग का नगरों की ओर बढ़ना एक गतिशील मुद्रा – प्रधान अर्थव्यवस्था के आधार पर संभव हुआ जो प्रतियोगी था एवं एक उद्यमी प्रवृत्ति से प्रेरित था । इसी सामाजिक आर्थिक परिवर्तन के आधार पर प्रव्रजन की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई । आधुनिक शहरों के विकास ने भी लोगों को शहरी जीवन की ओर रूझान बढ़ाया । यह ऐसी प्रक्रिया है जहाँ क्रमशः नगरीय जनसंख्या का बड़े – से – बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरों में बसने लगा । शहर ही प्रायः राजनीतिक प्राधिकार के केन्द्र बन गए जहाँ दस्तकार , व्यापारी और अधिकारी बसने लगे ।
प्रश्न 3. शहरीकरण की प्रक्रिया में व्यवसायी वर्ग , मध्यम वर्ग एवं मजदूर वर्ग की भूमिका की चर्चा करें ।
उत्तर– शहरीकरण की प्रक्रिया में व्यवसायी वर्ग , मध्यम वर्ग एवं मजदूर वर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही । शहरीकरण के साथ ही समाज में इन वर्गों का महत्त्व बढ़ता ही गया ।
व्यवसायी वर्ग– शहरीकरण की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप ही व्यापार तथा वाणिज्य का विकास हुआ । नये – नये व्यवसायों के कारण विभिन्न व्यवसायी वर्ग की उत्पत्ति हुई । चूँकि व्यापार शहरों में ही होते थे , इसलिए शहरों में ही विभिन्न व्यवसायी वर्ग अस्तित्व में आए । व्यवसायी वर्ग नगरों के उद्भव का एक प्रमुख कारण व्यावसायिक पूँजीवाद के उदय के साथ संभव हुआ । व्यापक स्तर पर व्यवसाय , बड़े पैमाने पर उत्पादन , मुद्रा – प्रधान अर्थव्यवस्था , शहरी अर्थव्यवस्था जिसमें काम के बदले वेतन मजदूरी का नगद भुगतान , एक गतिशील एवं प्रतियोगी अर्थव्यवस्था , स्वतंत्र उद्यम , मुनाफा कमाने की प्रवृत्ति , मुद्रा , बैंकिंग , साख बिल का विनिमय , बीमा अनुबंध कम्पनी साझेदारी आदि व्यवसाय पूँजीवादी व्यवस्था की विशेषता रहे । शहरों में यह व्यवसायी वर्ग एक नये सामाजिक शक्ति के रूप में उभरकर आया ।
मध्यम वर्ग– शहरीकरण की प्रक्रिया ने समाज में मध्यम वर्ग के उदय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । शहरों के उद्भव ने मध्यम वर्ग को काफी शक्तिशाली बनाया । एक नये शिक्षित वर्ग का अभ्युदय जहाँ विभिन्न पेशों में रहकर भी औसतन एकसमान आय प्राप्त करनेवाले वर्ग के रूप में उभरकर आए एवं बुद्धिजीवी वर्ग के रूप में स्वीकार किए गए । यह मध्यम वर्ग विभिन्न रूप में शहरों में कार्यरत थे , जैसे शिक्षक , वकील , चिकित्सक , इंजीनियर , क्लर्क , एकाउंटेंट्स । इनके जीवन मूल्य के आदर्श समान रहे और इनकी आर्थिक स्थिति भी एक वेतनभोगी वर्ग के रूप में उभरकर आई ।
मजदूर वर्ग – आधुनिक शहरों में जहाँ एक ओर पूँजीपति वर्ग का अभ्युदय हुआ तो दूसरी ओर शहरों में श्रमिक या मजदूर वर्ग का भी उदय हुआ । सामंती व्यवस्था के अनुरूप विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग के द्वारा सर्वहारा वर्ग का शोषण प्रारंभ हुआ जिसके परिणामस्वरूप शहरों में दो परस्पर विरोधी वर्ग उभरकर आए । शहरों में कल – कारखानों की स्थापना के कारण कृषक वर्ग जो लगभग भूमिविहीन कृषि वर्ग के रूप में थे , बेहतर रोजगार के अवसर को देखते हुए भारी संख्या में शहरों की ओर पलायन दिये । अतः , शहरीकरण ने इन मजदूरों को रोजगार का अवसर मुहैया कराया जिसके कारण शहरों में मजदूर वर्ग का उदय हुआ ।
प्रश्न 4. शहरी जीवन में किस प्रकार के सामाजिक बदलाव आए ?
उत्तर – शहरों का सामाजिक जीवन आधुनिकता के साथ अभिन्न रूप से जोड़ा जाता है । वास्तव में यह एक – दूसरे की अंतर्भभिव्यक्ति है । शहरों को आधुनिक व्यक्ति का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है । सघन जनसंख्या के यह स्थल जहाँ कुछ मनीषियों के लिए अवसर प्रदान करता है वहीं यथार्थ में यह अवसर केवल कुछ व्यक्तियों को ही प्राप्त होता है । परंतु इन बाध्यताओं के बावजूद शहर ‘ समूह पहचान ‘ के सिद्धांत को आगे बढ़ाते हैं जो कई कारणों से जैसे प्रजाति , धर्म , नृजातीय , जाति प्रदेश तथा समूह शहरी जीवन का पूर्ण प्रतिनिधित्व करते हैं । वास्तव में कम स्थान में अत्यधिक लोगों का जमाव , पहचान को और तीव्र करता है तथा उनमें एक ओर सह – अस्तित्व की भावना उत्पन्न करता है तो दूसरी ओर प्रतिरोध का भाव । अगर एक ओर सह – अस्तित्व की भावना है तो दूसरी ओर पृथक्करण की प्रक्रिया । शहरों में नए सामाजिक समूह बने । सभी वर्ग के लोग बड़े शहरों की ओर बढ़ने लगे । शहरी सभ्यता ने पुरुषों के साथ महिलाओं में भी व्यक्तिवाद की भावना को उत्पन्न किया एवं परिवार की उपादेयता और स्वरूप को पूरी तरह बदल दिया । जहाँ पारिवारिक सम्बन्ध अब तक बहुत मजबूत थे वहीं ये बंधन ढीले पड़ने लगे । महिलाओं के मताधिकार आंदोलन या विवाहित महिलाओं के लिए सम्पत्ति में अधिकार आदि आंदोलनों के माध्यम से महिलाएँ लगभग 1870 ई . के बाद से राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा ले पाईं । समाज में महिलाओं की स्थिति में भी परिवर्तन आए । आधुनिक काल में महिलाओं ने समानता के लिए संघर्ष किया और समाज को कई रूपों में परिवर्तित करने में सहायता दी । ऐतिहासिक परिस्थितियाँ महिलाओं के संघर्ष के लिए कहीं सहायक सिद्ध हुई हैं तो कहीं बाधक । उदाहरण के लिए , द्वितीय विश्वयुद्ध के समय पाश्चात्य देशों में महिलाओं ने कारखानों में काम करना प्रारंभ किया । एक दूसरा उदाहरण है जहाँ महिलाएँ अपनी अस्मिता में परिवर्तन लाने में सफल हुईं वह क्षेत्र था उपभोक्ता विज्ञापन । विज्ञापनों ने उपभोक्ता के रूप में महिलाओं को संवेदनशील बनाया । शहरी जीवन से समाज में नए – नए वर्गों का उदय हुआ । व्यवसायी वर्ग , मध्यम वर्ग , पूँजीपति वर्ग तथा श्रमिक वर्ग ।
Very good content