Important articles for all students educationalpoints

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EDUCATIONAL POINTS

इस पोस्ट में आप लोगों को 
1.परिश्रम की महत्ता 2. समय की महत्ता 3. पुस्तकें सच्ची मित्र पे लेख मिलेगा यह लेख सभी विद्यार्थियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।

1. परिश्रम की महत्ता

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भूमिका– श्रमशील व्यक्ति ही जीवन में सफलता और समाज में प्रतिष्ठा पा सकता है । क्योंकि सारे उपादान जो भी प्रकृति प्रदत हैं हमारे चारों ओर पड़े हैं । जिसे हम श्रम के बल पर ही प्राप्त कर सकते हैं और उपभोग करते गीता में श्रीकृष्ण की यह पंक्ति केवल कर्म की प्रेरणा देती है । कर्म होगा तो फल मिल ही जाएगा इसका विश्वास जगाती हैं ।

 परिश्रम से सफलता – श्रम करने से हमारी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है केवल मन में सुख की कामनाओं की कल्पनाएँ करना आलसी व्यक्ति का काम है । यदि परिश्रमी लोग इस संसार में नहीं होते तो शायद हम हवाई जहाज नहीं उड़ा रहे होते , रेलगाड़ी दौड़ती नजर नहीं आती । सुरसा की तरह मुँह बाए इतनी बड़ी आबादी की तमाम सुख सुविधाएँ पूरी नहीं हो पाती जिस किसी भी देश की उन्नति परम वैभव के उच्च शिखर पर पहुँचा है वहाँ के लोग श्रमशील और कर्मठ है । चाहे वे महान वैज्ञानिक हो , कलाकार हो , इंजीनियर हो या दार्शनिक हो सबकी श्रमशीलता ही विकास में फलीभूत होती है ।

 कुछ सफल व्यक्तियों से तुलनात्मक अध्ययन– सभी व्यक्तियों में श्रमशक्ति अलग – अलग प्रकार की होती है कोई विकसित मानसिकता का होता है तो कोई साधारण । परन्तु दोनों के ही परिश्रम से घर परिवार समाज से लेकर संसार तक की हित रक्षा हो पाती है । यदि सामाजिक और दार्शनिक हित रक्षक परिश्रमी व्यक्तियों में राम , कृष्ण , बुद्ध , महावीर , गाँधी , मुसा , मसीह , नानक देव , सुकरात , अरस्तू आदि का नाम है तो वैज्ञानिक हित रक्षक आस्टाइन , न्यूटन , वायल , हुक , बसु जैसे लोगों का नाम उल्लेखनीय है ।

उपसंहार — अतः हम संक्षेप में कह सकते हैं कि परिश्रम का अपना महत्त्व है । हमारा विजय रथ तब तक चलता रहेगा जब तक हम श्रम करते रहेंगे । हमें मृत्यु के समान कष्ट कारक आलसी नहीं अपितु परिश्रमी भाग्य विधाता बनना है ।

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2. समय की महत्ता

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भूमिका– समय जीवन की गति होता है । सृष्टि की सभी घटनाएँ तथा सभी बातें समय से बँधी होती हैं । समय को काल , क्षण , पल , युग , वर्ष , घंटा , मिनट आदि कई नामों से पुकारा जाता है । समय हमेशा गतिशील होता है । संसार के सबकुछ समय के अधीन होते हैं , इसलिए समय की महत्ता असीम है ।

समय रहते सचेत होना– समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता । इसलिए , व्यक्ति को समय रहते सचेत होना चाहिए । छात्र को समय पर अपना नित्य कर्म , अध्ययन , खान – पान तथा अन्य काम – धंधा करना चाहिए , समय पर सोना तथा उठना चाहिए । किसानों को समय के अनुसार कृषि कर्म करना चाहिए । श्रमिकों को समय के अनुसार ही श्रम करना चाहिए । पशु – पक्षी भी समय का पालन करते हैं । समय पीछे नहीं मुड़ता , इसलिए जो व्यक्ति समय रहते अपने कर्म के प्रति सचेत नहीं होता उसे समय बीत जाने पर पछताना पड़ता है ।

सदुपयोग का लाभ – समय और कर्म ( श्रम ) का पारस्परिक सम्बन्ध है । समय पर किया गया काम हीरे – मोती जैसा लाभकारी होता है । यदि व्यक्ति सुबह – सवेरे सोकर उठता है तो दिनभर तरोताजा रहता है और सभी काम समय पर सम्पन्न हो जाते हैं । इसी प्रकार , रात में सवेरे सोने पर विश्राम पूरा होता है एवं शरीर स्वस्थ रहता है । समय पर अध्ययन , भोजन एवं काम – धाम पूर्ण लाभकारी होते हैं । अतः समय का सदुपयोग व्यक्ति को प्रचुर लाभ देता है ।

दुरुपयोग की हानि – समय के दुरुपयोग से समय , श्रम तथा धन की हानि होती है । जो व्यक्ति समय पर विद्यालय , कार्यालय या यात्रा पर नहीं जा पाते उन्हें इनके लाभ नहीं मिलते और किया गया श्रम तथा उनमें लगा धन व्यर्थ हो जाता है । समय के दुरुपयोग से हमेशा हानि होती है और व्यक्ति को असफलता मिलती है ।

उपसंहार– समय की महत्ता को पहचानते हुए जो व्यक्ति समय का सदुपयोग करता है उसका जीवन सुखी होता है तथा जो समय का दुरुपयोग करता है , वह असफलता का भागी होता है ।

3. पुस्तके सच्ची मित्र

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भूमिका– ” मैं नरक में भी रहूँगा , पुस्तकों का स्वागत करूँगा क्योंकि इसमें वह शक्ति है कि जहाँ ये होंगी वहाँ अपने – आप ही स्वर्ग बन जाएगा । ” लोकमान्य तिलक की पंक्तियाँ साबित कर देती है कि मानव जीवन में पुस्तकों का कितना बड़ा योगदान है । पुस्तकों से ज्यादा सच्ची मित्र कोई हो ही नहीं सकता । गुरू हमें ज्ञान देते हैं । कुछ समय तक ही हम उनके पास रह पाते हैं , ज्ञानामृत पी सकते हैं । लेकिन पुस्तकें सदैव हमारे साथ रहती है । अतः यह गुरूओं की गुरू भी है ।

सभ्यता – संस्कृति के विकास में – अनादिकाल से मनुष्य ज्ञान परिष्करण हेतु प्रयासरत रहा है । सभ्यता के विकास के पहले मानव पशुवत् जीवन यापन करता था । आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है । अत : लोगों ने आपसी समझ से भाषा बनाने का प्रयास किया । कालान्तर में सभ्यता के विकास में उस भाषा के बदौलत बहुत तेजी से अभिवृद्धि हुई और लिपि का आविष्कार , छापाखानों का निर्माण तथा पुस्तकों की रचनाएँ एक कड़ी की तरह है । जो हमारी सभ्यता – संस्कृति के विकास में अहम बनी ।

जीवन की सफलता में– बाल्यावस्था में जीवनशक्ति की तरह ही इच्छा शक्ति भी पनपती रहती है । उस इच्छा शक्ति को पूरा करने और बल प्रदान करने में पुस्तकें सबसे महत्त्वपूर्ण और उचित माध्यम बन जाती है । वैज्ञानिकों , महापुरुषों साहित्यकारों और दार्शनिकों आदि की कृतियों , उनकी जीवन शैली , आत्मकथाएँ आदि का अध्ययन कर ही हम उच्च कोटि की सफलता प्राप्त कर सकते हैं । जब हम इन लोगों का अध्ययन करते हैं तो हमारा विकास होता है ।

ज्ञान की अभिवृद्धि में– गाँधीजी पर गीता की टालस्टॉय , थारो आदि की महान कृतियों की महती छाप थी । उन्होंने अपने ज्ञान की अभिवृद्धि के लिए उन पुस्तकों का अध्ययन किया , मार्क्स की रचनाओं का अध्ययन कर क्रान्ति की भी शिक्षा प्राप्त की । किसी ने कहा है कि ” मानव जाति ने जो कुछ किया , सोचा या पाया है , वह पुस्तकों के जादू भरे पृष्ठों में सुरक्षित हैं । ” थामस ए ० केम्पिस ने कहा है कि ” बुद्धिमानों की रचनाएँ ही एक मात्र ऐसी अक्षय निधि है जिन्हें हमारी संतति नष्ट नहीं कर सकती है । मैंने प्रत्येक स्थान पर विश्राम खोजा , किंतु वह एकांत कोने में बैठकर पुस्तक पढ़ने के अतिरिक्त कहीं प्राप्त न हो सका । ” अतः ज्ञान की अभिवृद्धि पुस्तकों में ही है ।

उपसंहार — इस प्रकार पुस्तकें सर्वोत्तम साथी है । हमारे साथ रहनेवाली , सुख – दु : ख सहायक होती है । चूँकि पुस्तकें पढ़ना समय का सर्वोत्तम उपयोग है , उच्चकोटि का मनोरंजन है । गाँधीजी ने कहा है कि यदि आप खूब पढ़े – लिखे हैं और रोज पुस्तकों का अध्ययन नहीं करते हैं तो आप मूर्ख समान हैं । अतः पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र और जीवन – पथ की संरक्षिका है ।

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