ITI 2ND YEAR IMPORTANT NOTES educationalpoints
इस पोस्ट में आप लोगों को आईटीआई इलेक्ट्रीशियन ट्रेड थ्योरी के दिष्ट धारा मोटर (DC MOTOR) के कुछ महत्वपूर्ण नोट्स दिए जाएंगे।
यह नोट्स के बारे द्वितीय वर्ष के विद्यार्थियों के लिए है।
दिष्ट धारा मोटर (DC MOTOR)
परिचय Introduction
– वैद्युतिक ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करने वाली मशीन , मोटर कहलाती है । डी.सी. सप्लाई से यान्त्रिक ऊर्जा उत्पन्न करने वाली मशीन , डी.सी. मोटर एवं ए.सी. सप्लाई से यान्त्रिक ऊर्जा उत्पन्न करने वाली मशीन , ए.सी. मोटर कहलाती है । डी.सी. मोटर वैद्युतिक शक्ति से प्रचालित होती है एवं उसकी शाफ्ट पर यान्त्रिक शक्ति प्राप्त होती है । इस अध्याय में डी.सी. मोटर का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है ।
1.डी.सी. मोटर की संरचना Construction of DCMotor
-डी.सी. मोटर तथा डी.सी. जनित्र की संरचना एक जैसी होती है । वस्तुतः एक ही मशीन को यान्त्रिक ऊर्जा देकर डी.सी. जनित्र के रूप में तथा वैद्युतिक ऊर्जा देकर डी.सी. मोटर के रूप में प्रचालित किया जा सकता है । सामान्यतः डी.सी. जनित्र को ठण्डा रखने के उद्देश्य से प्रयुक्त एण्ड कवर्स , डी.सी. मोटर की बॉडी की अपेक्षा अधिक खुले हुए बनाए जाते हैं , परन्तु शेष संरचना में कोई अन्तर नहीं होता है ।
2.डी.सी. मोटर का सिद्धान्त Principle of DC Motor
–डी.सी. जनित्र में प्रेरित विद्युत धारा के कारण आमेचर भी स्वयं का एक चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित करता है । यह चुम्बकीय क्षेत्र , आर्मेचर को उसकी घुमाव दिशा के विपरीत दिशा में घुमाने का प्रयास करता है । यह प्रयास विद्युत चुम्बकीय खिंचाव कहलाता है । यह खिंचाव ही डी.सी. मोटर के आर्मेचर में घूर्णन गति के रूप में यान्त्रिक ऊर्जा उत्पन्न करता है । डी.सी. मोटर इसी विद्युत – चुम्बकीय खिंचाव के सिद्धान्त पर कार्य करती है । इस सिद्धान्त के अनुसार , ” किसी चुम्बकीय क्षेत्र में अवस्थित विद्युत धारावाही चालक स्वयं का एक चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित करता है और एक ही स्थान पर कार्यरत् इन दो चुम्बकीय क्षेत्रों की पारस्परिक प्रतिक्रिया के फलस्वरूप चालक में एक टॉर्क ( torque ) उत्पन्न हो जाता है । ” जब किसी धारावाही चालक को समरूप चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है , तब चालक पर एक बल आरोपित होता है , जो इसे चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् चालित करता है । इन दोनों क्षेत्रों की अन्तक्रिया ( interactions ) के कारण चालक के ऊपर फ्लक्स में वृद्धि होगी एवं चालक के नीचे फ्लक्स में कमी होगी ।
3.डी.सी. मोटर की कार्यप्रणाली Working Method of DC Motor
-आर्मेचर – लूप का चालक A उत्तरी ध्रुव तथा चालक B दक्षिणी ध्रुव के प्रभाव में है । फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम के अनुसार , जब तक लूप में विद्युत धारा प्रवाहित होती रहती है और वह चुम्बकीय क्षेत्र में विद्यमान रहता है , तब तक आर्मेचर – लूप में उत्पन्न हुआ टॉर्क ( torque ) , लूप को वामावर्त दिशा में घुमाता रहता है तथा लूप वामावर्त दिशा ( anti – clockwise ) में घूर्णन करने का प्रयास करता रहता है ।
4.डी.सी. मोटर में बैक ई.एम.एफ. Back EMF in DC Motor
-डी.सी. मोटर का आर्मेचर जैसे ही घूर्णन करना प्रारम्भ करता है , वह फील्ड पोल्स द्वारा स्थापित चुम्बकीय फ्लक्स का छेदन करने लगता है । फलस्वरूप , फैराडे के विद्युत – चुम्बकीय प्रेरण नियम के अनुसार , आर्मेचर चालकों में एक वि.वा.ब. प्रेरित हो जाता है । यह प्रेरित वि.वा.ब. आमेचर पर आरोपित वि.वा.ब. की विपरीत दिशा में कार्य करता है । अतः यह विरोधी वि.वा.ब. या बैक ई.एम.एफ. ( E ) कहलाता है । इस वि.वा.ब. का मान , जनित्रों के लिए प्रयोग की गई वि.वा.ब. समीकरण से ही ज्ञात किया जाता है , जो निम्न प्रकार है
5.आर्मेचर में विद्युत धारा की दिशा परिवर्तित करके By Changing the Direction of Electric Current in Armature
-डी.सी. मोटर की कार्यप्रणाली में दर्शाया गया है कि आर्मेचर – लूप में उत्पन्न टॉर्क , लूप को वामावर्त दिशा में घुमाता रहता है । अत : डी.सी. मोटर की घूर्णन दिशा परिवर्तित करने के लिए आर्मेचर के संयोजन परिवर्तित किए जाते हैं अर्थात् जो संयोजक पहले स्रोत के धन सिरे से जुड़ा था , उसे ऋण सिरे से तथा ऋण सिरे से जुड़े संयोजक को स्रोत के धन सिरे से जोड़ दिया जाता है । आर्मेचर में विद्युत धारा प्रवाह की दिशा परिवर्तित होने से फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम के अनुसार , आर्मेचर के घुमाव की दिशा भी परिवर्तित हो जाती है , परन्तु यदि आर्मेचर तथा क्षेत्र दोनों प्रकार की वाइण्डिग में विद्युत धारा प्रवाह की दिशा परिवर्तित कर दी जाए , तो आर्मेचर की घूर्णन दिशा में कोई परिवर्तन नहीं होगा ।
6.शाफ्ट टॉर्क Shaft Torque
-आर्मेचर द्वारा उत्पन्न टॉर्क का कुछ अंश स्ट्रे – क्षतियों के कारण नष्ट हो जाता है । अत : उपयोगी टॉर्क ही शाफ्ट को उपलब्ध होता है , जो शाफ्ट टॉर्क कहलाता है । इस टॉर्क की सहायता से पुली द्वारा यान्त्रिक शक्ति मिलती है । इसे मोटर का आउटपुट भी कहा जाता है ।
7.डी.सी. सीरीज मोटर DCSeries Motor
-डी.सी. सीरीज मोटर में फील्ड वाइण्डिग , आर्मेचर के श्रेणी – क्रम में चित्रानुसार संयोजित होती है । इस मोटर में पूर्ण आर्मेचर – धारा , फील्ड – वाइण्डिग में से होकर प्रवाहित होती है , इसलिए फील्ड वाइण्डिंग को मोटे तार तथा कम लपेटों वाला बनाया जाता है । चित्र के अनुसार , आर्मेचर व सीरीज फील्ड दोनों श्रेणी – क्रम में संयोजित हैं , इसलिए भार में -परिवर्तन होने पर, फिल्ड बाइंडिंग के चुंबकीय क्षेत्र पर भी प्रभाव पड़ता है।
8.डी.सी. सीरीज मोटर के अभिलक्षण Characteristics of DC Series Motor
-डी.सी. सीरीज मोटर का स्टार्टिंग टॉर्क बहुत अधिक होता है । कुछ मोटर्स में तो यह फुल – लोड टॉर्क का पाँच गुना तक होता है । सीरीज मोटर के अभिलक्षणों का अध्ययन निम्न तीन प्रकार के अभिलक्षण वक्रों द्वारा किया जाता है।
9.टॉर्क – लोड अभिलक्षण
सीरीज मोटर में कम लोड पर , टॉर्क का मान भी कम होता है , क्योंकि आर्मेचर – धारा तथा फील्ड फ्लक्स का मान निम्न रहता है । जैसे – जैसे लोड का मान बढ़ता है , वैसे – वैसे टॉर्क का मान , आर्मेचर – धारा के वर्ग के समानुपात में बढ़ता है ।
10.डी.सी. शण्ट मोटर के अभिलक्षण Characteristics of DC Shunt Motor
-शण्ट मोटर को लोड – रहित अवस्था में चलाया जा सकता है और इस अवस्था में मोटर को केवल इतने ही टॉर्क की आवश्यकता होती है , जितना कि उसकी यान्त्रिक क्षति आदि की पूर्ति के लिए आवश्यक हो । शण्ट मोटर के अभिलक्षण वक्र निम्नवत् हैं।
11.गति – लोड अभिलक्षण
शण्ट मोटर की गति में , लोड – रहित अवस्था से पूर्ण – लोड अवस्था में आने में बहुत कम अन्तर उत्पन्न होता है , क्योंकि शण्ट मोटर स्थिर गति की मोटर होती है ।
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