ITI ELECTRICIAN 2ND YEAR IMPORTANT NOTES EDUCATIONALPOINTS

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इस पोस्ट में आप लोगों को आईटीआई इलेक्ट्रिशियन ट्रेड की द्वितीय वर्ष की परीक्षा में पूछे जाने वाले दिष्ट धारा जनित्र से कुछ महत्वपूर्ण नोट्स दिए गए हैं। यह काफी उपयोगी है

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परिचय Introduction
डी.सी. मशीन सामान्यतः वैद्युत यान्त्रिक ऊर्जा परिवर्तक है , जोकि डी.सी. स्रोत पर कार्य करता है । वैद्युतिक ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करने वाली मशीन , डी.सी. मोटर कहलाती है एवं यान्त्रिक ऊर्जा को डी.सी. वैद्युतिक ऊर्जा में परिवर्तित करने वाली मशीन , डी.सी. जनित्र कहलाती है । जल , वायु , वाष्प , परमाणु ऊर्जा व पेट्रोलियम ईंधन इत्यादि के द्वारा उत्पन्न यान्त्रिक शक्ति को जनित्र द्वारा वैद्युत शक्ति में परिवर्तित करके विभिन्न अनुप्रयोगों में प्रयोग किया जाता है । डी.सी. जनित्र को समझने से पूर्व वैद्युतिक मशीनों की सामान्य अवधारणा को समझना आवश्यक है ।

1.1 घूर्णीय वैद्युतिक मशीनों की सामान्य अवधारणा
 General Concept of Rotating Electrical Machines
-वैद्युतिक मशीनें सामान्यतः विद्युत – चुम्बकीय प्रभाव
( electro – magnetic effect ) पर आधारित होती हैं ; जैसे – वैद्युतिक मोटर्स एवं वैद्युतिक जनित्र इत्यादि । एक वैद्युतिक मोटर , वैद्युतिक ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में जबकि एक वैद्युतिक जनित्र , यान्त्रिक ऊर्जा को वैद्युतिक ऊर्जा में परिवर्तित करता है । एक वैद्युतिक मशीन के चलित भाग ( movable parts ) – घूर्णीय ( घूर्णीय मशीन ) या रेखीय ( रेखीय मशीन ) दोनों प्रकार के हो सकते हैं । वैद्युतिक मशीनों की बाह्य आकृति में दो वैद्युतिक परिपथ होते हैं , जो एक चुम्बकीय परिपथ के द्वारा जुड़े होते हैं । जनित्र एवं मोटर के अतिरिक्त ट्रांसफॉर्मर भी वैद्युतिक मशीन के अन्तर्गत आता है , जोकि प्रत्यावर्ती धारा के वोल्टेज स्तर को परिवर्तित करता है । वैद्युतिक मशीनों को ए.सी. एवं डी.सी. मशीनों में विभक्त किया जाता है । प्रत्यावर्ती धारा पर प्रचालित होने वाली वैद्युतिक मशीनों को , ए.सी. मशीन एवं दिष्ट धारा पर प्रचालित होने वाली वैद्युतिक मशीनों को डी.सी. मशीन कहते हैं । डी.सी. मशीन को पुनः डी.सी. जनित्र एवं डी.सी. मोटर में विभक्त किया जाता है । इस अध्याय में डी.सी. जनित्र का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है ।

1.2 डी.सी. जनित्र का सिद्धान्त Principle of DC Generator
 -डी.सी. जनित्र या डायनमो , फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण सिद्धान्त पर आधारित है । इस सिद्धान्त के अनुसार , “ यदि किसी चालक को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में इस प्रकार गतिमान कराया जाए कि उसकी गति से चुम्बकीय बल रेखाओं का छेदन होता हो , तो उस चालक में वि.वा.ब. उत्पन्न हो जाता है । यदि जनित्र द्वारा यान्त्रिक ऊर्जा से डी.सी. उत्पन्न की जाती है , तो इसे डी.सी. जनित्र और यदि ए.सी. उत्पन्न की जाती है , तो इसे आल्टरनेटर कहते हैं यान्त्रिक ऊर्जा से डी.सी. उत्पन्न करने वाली छोटे आकार की मशीन डायनमो कहलाती है , जिसका उपयोग सामान्यत : विभिन्न प्रकार के वाहनों में बैटरी – चार्जिंग के लिए किया जाता है ।

1. योक Yoke
जनित्र के बाह्य भाग को योक या बॉडी कहते हैं । यह कास्ट आयरन अथवा कास्ट स्टील से बनाई जाती है । छोटे जनित्रों की बॉडीयः कास्ट आयरन से एवं बड़े जनित्रों की बॉडी , कास्ट स्टील से बनाई जाती है । योक या बॉडी में साइड कवर फिट होते हैं । उनमें बियरिंग का स्थान बना होता है , जिससे आर्मेचर की शाफ्ट घूम सके । बॉडी के ऊपर टर्मिनल बॉक्स लगा होता है , जिसके अन्दर फील्ड पोल्स लगे होते हैं । बॉडी के दोनों ओर दो साइड प्लेट्स होती हैं , जो मशीन को पूरी तरह ढक देती है ।

2. फील्ड पोल Field Pole
छोटे आकार वाले डायनमो में चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित करने के लिए स्थायी चुम्बक प्रयोग किए जाते हैं , परन्तु बड़े आकार वाले डायनमो तथा डी.सी. जनित्र में इस कार्य हेतु फील्ड पोल्स प्रयोग किए जाते हैं । इसके मुख्य भाग में पोल शू , सॉलिड पोल कोर आदि लगे होते हैं । इन्हें बॉडी के अन्दर मुख्य पोल के रूप में बोल्ट की सहायता से कसा जाता है । ये सिलिकॉन स्टील की लेमिनेटेड कोर द्वारा बनाए जाते हैं । फील्ड पोल्स दो प्रकार के होते हैं जिनका विवरण निम्न प्रकार है।

1. सु सहित लैमिनेटेड पोल laminated pole with shoe Pole

2. मोल्डेड पोल Moulded Pole



3. कम्यूटेटर Commutator
 यह आकार में वृत्ताकार होता है , जो हार्ड – ड्रॉन ताँबे की मोटी पत्तियों को बैकेलाइट के आधार पर कस कर बनाया जाता है । पत्तियों के बीच में रिक्त स्थान होता है , जिसमें अभ्रक भर दिया जाता है । कम्यूटेटर को आर्मेचर शाफ्ट पर स्थापित किया जाता है । इसकी पत्तियों के सिरों पर आर्मेचर – वाइण्डिग्स के सिरे सोल्डर कर दिए जाते हैं । इसका मुख्य कार्य आर्मेचर क्वॉयल्स में उत्पन्न हुए वि.वा.ब. को डी.सी. के रूप में बाह्य परिपथ को प्रदान करना है । इसमें ताँबे की पत्तियाँ ‘ v ‘ आकार में लगाई जाती हैं , जिससे मशीन के घूमने पर उत्पन्न अपकेन्द्री बल के कारण ये पत्तियाँ बाहर न निकलें । ये ताँबे की पत्तियाँ , संख्या में आर्मेचर क्वॉयल्स के बराबर होती हैं एवं इनका पिछला उभरा हुआ भाग , जिस पर आर्मेचर वाइण्डिग्स जुड़ी होती हैं , राइजर या लग कहलाता है ।

4. ब्रश तथा ब्रश – होल्डर Brush and Brush – holder
-डी.सी. जनित्र द्वारा उत्पन्न वि.वा.ब. को कम्यूटेटर से बाह्य परिपथ को प्रदान करने के लिए जो युक्ति प्रयोग की जाती है , वह ब्रश कहलाती है । ब्रश को ब्रश – होल्डर में लगाया जाता है । छोटे जनित्रों में कार्बन ब्रश प्रयोग किया जाता है और बड़े जनित्रों में कार्बन व ताँबे के मिश्रण से बना ब्रश प्रयोग किया जाता है । ब्रश का मुख्य कार्य है – कम्यूटेटर के साथ ‘ फिसलता हुआ सम्पर्क ‘ स्थापित करना । ब्रश , आयताकार होता है और इसे आयताकार पीतल के दोनों ओर से खुले बॉक्स में लगा दिया जाता है । कम्यूटेटर पर ब्रश का दबाव बनाए रखने के लिए एक स्प्रिंग – पत्ती होती है । इस स्प्रिंग का दबाव 0.1 से 0.25 किग्रा प्रति वर्ग सेमी तक रखा जाता है ।

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