होनहार बिरवान के होत चिकने पात
प्रतिभा अभ्यास से नहीं उत्पन्न होती और वह धनराशि से खरीदी भी नहीं जा सकती । जीवन के सभी क्षेत्रों में अपनी मौलिक प्रतिभा का परिचय देनेवाले महापुरुषों का जीवनवृत्त साक्षी है कि उन्होंने बचपन से ही अपनी विलक्षणता की ओर संकेत किया है । पूत के पाँव पालने में ही सूचित कर देते हैं कि यह होनहार बिरवा आनेवाले दिनों में कितने विशाल वटवृक्ष के रूप में परिणत होगा । राष्ट्र और समाज के प्रति अपनी प्रातिभ चेतना से विलक्षण योगदान देनेवाले लोगों ने बचपन से ही अपनी मनोवृत्ति और क्रियाशीलता का संकेत दिया है । पत्थर पर लगातार रस्सी के घिसने से निशान अवश्य पड़ जाते हैं , लेकिन प्रतिभा का दीप प्रौढ़ावस्था में नहीं प्रज्वलित होता । बचपन की गतिविधियों में किसी भी व्यक्ति की भावी जीवनयात्रा का पूर्वाभास परिलक्षित होता है ।
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